मस्ती और बे खुदी हजरत शैख़ अबु अली दकाक
हजरत शैख़ अबु अली दकाक का वाक़्या है कि एक वक़्त ऐसा भी आया कि जब आपके पास पहनने के लिये कोई भी लिबास ना था रिवायत है कि आप ब्राहंगी की हालत मे हजरत अब्दुल्लाह की खानकाह पे तशरीफ ले गये वहाँ एक शख्स ने आपको पहचान लिया और आपकी बहुत ज़ियादा इज्जत वा तक़रीम की उसी दौरान वहाँ पर मौजूद दूसरे लोगों ने भी आपको पहचान लिया और वोह सब परवानो की तरह आपके गिर्द जमा हो गए फिर उन्होंने इसरार किया कि हजरत आप यहाँ पर कुछ दर्स दे मगर जब आपने इंकार कर दिया तो लोगों ने आपसे तकरीर की फरमाइश की आपने तकरीर से भी इंकार करने की कोशिश की मगर जब लोगों का इसरार ज़ियादा बढ़ा तो शैख़ अबु अली दकाक मिम्बर पर तशरीफ ले गये पहले उन्होंने दाहनी तरफ इशारा करके अल्लाहुअकबर और फिर बाएं जानिब इशारा करके वल्लाह खैरुल बका फरमाया,
इसके बाद क़िबला होकर मन अल्लाहुअकबर फरमाया उस वक़्त लोगों पर बेखुदी और मस्ती का ऐसा आलम तारी हुआ कि मजलिस ने हर तरफ शोर वा गौगा बुलंद हुआ और बहुत से हाजरीन बेहोश हो गये आप उसी कैफियत मे मिम्बर से उतर कर ना मालूम मंजिल की तरफ चल दिये फिर जब लोगों की हालत दुरुस्त हुई तो वोह आपको तलाश करने लगे मगर उस वक़्त आप मरु पहुंच चुके थे हालांकि आप चन्द लम्हे पहले मजलिस मे मौजूद थे मगर अब यहाँ से सैकड़ो मील दूर तशरीफ फरमा थे,,,
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Thanks for reading: मस्ती और बे खुदी हजरत शैख़ अबु अली दकाक, Sorry, my Hindi is bad:)