साहू सालार की वफात और गाजी सरकार की खुवाब
Hindi storiesसैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां को बहराइच आए हुए लगभग दो महीने हुए थे कि सतरिख से अब्दुल मलिक, फिरोज़ का एक कासिद खत लेकर आया सबसे पहले कासिद की मुलाकात मोअज्जम खान से हुई कासिद को परेशान हाल देखकर उन्होने हाल दरयाफ्त किया कासिद ने बड़े गमगीन लहजे में हज़रत सालार शाहू रहमतुल्लाहे अलैह के इन्तिकाले पुरमाल की खबर सुनाई और खत पेश किया मोअज्जम खान ने खत अपने पास रख लिया और मना कर दिया कि किसी और जगह ये न बयान करना।
दूसरे दिन मोअज़्ज़म खान सरफुल मलिक, निज़ामुलमलिक, जहरूल, मलिक मलिक नेक बख्त और दूसरे बड़े वज़ीर सब ने मसलेहतन छिपा लिया फिर एक स्थान पर जमा होकर अब्दुल मलिक फिरोज का खत हज़रत गाजी अलैहिर्रहमां की खिदमत में पेश किया । खत का मजमून कुछ इस तरह था कि बतारीख 11 सब्बाल 423 हिजरी में मृत्यु के बाद आपका वहीं दफन कर दिया गया। सैय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमां अपने सफीक बाप की मौत की खबर सुनकर बेहाल हो गये आपकी गिरया वजारी और लश्कर की बे करारी लिखने से कलम के जिगर मे शिगाफ है सरीर खामा मे सदाये आह साफ है एक हश्र बपा था हजरत बार बार फरमाते थे कि खुवाजा हसन के शरारत से हम जला वतन होकर ग्रिफ्तारे रंज वा गम हुऐ कहिलर मे वालिदा माजिदा ने रहलत फरमाइ और वालिद मोहतरम को सतरिख की जमीन पसंद आई हमको नरगा असरार मे इस दस्ते परखार मे छोड़ कर खुद दुनियां से मुँह मोड़ गये आये काश इस वक़्त मै गजनी मे अपने अजीज वकारिब के पास होता तो अपनी यतीमी पर आंसू ना बहाता अब मुसीबतों मे कौन मेरी दिल दारी करेगा मेरे सर पर दस्ते शफकत कौन फेरेगा अब अब्बू जान कह कर किस्से कलाम करूँगा सतरिख मे जाकर किस्से सलाम करूँगा गर्जकी 10 दिन तक यही कैफियत तारी रही मारे गम और सदमें के आप पर बेहोशी छा गई कुछ समय के बाद जब आपके होश हवाश वजह हुए सब्र व शुक्र से काम लेते हुए आपने फरमाया कि अल्लाह के फैसले से हम राजी है।
पिता की मौत पर एक बेटे को गम और सदमा होना एक फितरी बात है फिर ऐसा बेटा जिसके दिन रात मैदाने जंग में गुजर रहे हो जहां कदम कदम पर एक तजुरबा कार फौजी सरदार के मश्विरा की जरूरत हो ऐसे समय में हजरत गाजी अलैहिर्रहमां के दिल पर पिता की मृत्यु से क्या कयामत टूटी होगी उसे हर कोई आसानी से समझ सकता है मगर कुरबान जाइऐ उस जवां साल मर्दै मुजाहिद पर कि जो माता पिता जो दोनों के साये से महरूम हो गया हो लेकिन मुजाहिदाना हौसले पस्त न हुए और इन मुसीबत की घड़ी में शीशा पिलाई हुई दीवार की तरह जमे रहे ऐ गाजी तेरी जवां मर्दी को सलाम।
जो जितने महान होते हैं उन्हें उतनी ही बड़ी मुश्किलों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है
सय्यद सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रहमा को अपने पिता की मृत्यु के बाद जब कुछ इतमिनान हुआ तो अब्दुल मलिक फिरोज को सतरिख का राज काज सौंप दिया घोड़ा कीमती पोशाक देकर तसल्ली देते हुए कहां कि सब्र व शुक से काम लीजिए और खुदा पर भरोसा करके अपना काम अंजाम देते रहिये।
आप सैर व शिकार के बड़े शौकीन थे किन्तु पिता की मौत के याद गम से इत्ना निढाल हुए कि दस दिन तक सैर वा शिकार के लिये नहीं गये धर्मरुओं आतिमों और बुजुर्गों के साथ बैठते उठते सदका खैरात करते कुरआन की तिलावत करते और गरीबों को ज़ियादा से ज़ियादा दान देते 10 दिन गुजर जाने के बाद आप शिकार के लिये निकले और तबलीगी मिशन की ओर ध्यान दिया यानी धर्म प्रचार में लग गये बहराइच की भूमि पर कदम रखने के बाद अकसर आप यह फरमाते कि ऐ दोस्त जबसे हम हिनदुस्तान में आए हैं हमें एक पल के लिए भी चैन या सुकून नसीब नहीं हुआ एक दिन भी बगैर तकलीफ और बे फिक्री के साथ नही गुजारा खास कर बहराइच जहां जंगल और वीराना ही वीराना है एक पल भी इतमिनान नसीब नहीं हुआ इसके बावजूद भी हमारा दिल इसकी तरफ मायल है। इस भूमि से प्यार मुहब्बत की खुश्बू महसूस हो रही है यहां की मिटटी और जलवायु में एक अजीब कशिश है आपकी ऐसी हसीन गुफ्तगू सुनकर लोग अच्छी तरह समझने लगे कि आप इशारों इशारों में क्या कहना चाहते हैं उनके गमजदा चहरों से सारे आसार नुमाया होने लगे फिर आपने लागों के चहरों से ये बातें पढ़ लीं जिस्से लोग फिकर मन्द और गमजदा हो रहे थे हाजरीन समझ गये कि इसी जघा आपकी आख़री आराम गाह बनेगी आपने बात का रूख दूसरी बातों की ओर मोड़ दिया आप हमेशा रसूलुल्लाह स० की हदीस पाक के मुताविक मौत की फिक्र में रहते।
ख्वाबे शहादत (शहादत का ख्वाब देखना)
मनुष्य का जीवन दुख तकलीफ आराम खुशी व गम से भरपूर है सैय्यत सालार मसऊद गाजी अलैहिर्रमां ने यूं ही दो तीन महीने रन्ज व खुशी बिताए जब मुहर्रम का चांद देखा गया और नया साल 424 हिजरी यानी 1030 ई0 का सूर्य उदय हुआ आपने प्रातः काल एक बड़ी सभा करके तमाम लश्करियों को जमा किया उन्होंने खाना खिलाकर और इतर इनाम अता करके रूख्सत किया। और खुद ताजा वजूह करके दोपह के समय फरमाने लगे आंख लग गई आंख लगते ही ख्वाब देख रहे कि दरियाये गंगा के किनारे प्रिय पिता का खेमा लगा हुआ है खूब सजावट है हर तरफ खुशी का समा है आप खेमें में दाखिल होते हैं क्या देखते हैं कि प्रिय रहमदिल माता फूलों का खूबसूरत सहरा लिए हुए किसी की प्रतीक्षा में खड़ी है और उनका नूरानी चहरा खुशियों से चमक रहा है। आपको देखकर उनकी खुशियों की इन्तिहा न रही कहने लगी बेटे मसऊद जल्दी आओ हमने बड़े अरमान से तुम्हारी शादी रचाई है आप भी खुशी में झूमकर मां के निकट पहुंच गये मां ने अपने प्यारे बेटे के सर पर सहरा बांध दिया। फिर सादियाने बजने लगे चारों तरफ खुशी का माहौल था शोर व गुल होने से अचानक आपकी नींद खुल गई हैरत ज़दह होकर सेवकों से पूछा कि क्या समय है उन्हें बताया गया कि जोहर का वक्त है आपने फौरन वजू करके नमाजे जोहर बा जमाअत अदा की फिर दरवेशों आलिमों और सलाह कारों को तलब किया उनसे अपना ख्वाब ब्यान कर ताबीर पूछी सभी लोगों ने एक जबान होकर यही ताबीर बताई कि आप शहादत से सरफराज़ होंगे अर्थात आप धर्म के नाम पर शहीद हो जायेंगे ख्वाब की ताबीर सुनकर आपने एक सर्द आह खींची और खुदा का शुक्र अदा किया व उपस्थित लोगों ने आपकी ओर एक हसरत भरी निगाह डाली और उनके मुंह से निकलने वाली कुरआन की उस आयत को गौर से सुना जिसका अर्थ ये निकलता है कि हर जीव को मौत का मजा चखना है उस व्यक्ति की खुशनसीबी का क्या कहना जो शहादत का जाम पीकर जिन्दा व जावेद हो जाएगा खुदा की बारगाह में मैं यही दुआ करता हूं कि हक खुदा मुझे और मेरे साथियों को शहादत की नेमत से सरफराज फरमाएं।
Rate This Article
Thanks for reading: साहू सालार की वफात और गाजी सरकार की खुवाब , Sorry, my Hindi is bad:)