कोई हरगिज न रोक सकेगा गाजी तेरे दीवानों को जमाना चाहे लाख कोशिश करले
कस्बा अमेठी जिला लखनऊ के मशहूर व मारूफ बुजुर्ग हज़रत मखदूम बन्दगी मियां का एक हज्जाम (नाई) था जो हफ्ते में एक निश्चित दिन आकर हज़रत के बाल बनाने और नाखून तराशने की खिदमत अन्जाम देता। एक बार मुर्ररा (निश्चित) समय से एक रोज पहले ही आया और कहने लगा हुजूर आज ही बाल बनवा लें चूंकि मुझे कल सुबह बहराइच जाना है बहुत लोग जा रहे हैं उन्हीं के साथ मुझे भी जाना है।
हज़रत बन्दगी मियां ने बतौर आज़माइश नाई से कहा कि क्या ज़रूरी है कि हर साल जाओ इस साल नागा कर दो अगले साल चले जाना नाई ने कहा एक साल का समय बहुत होता है खुदा जाने ज़िन्दगी रहे न रहे। मुझे इजाजत दे दीजिए मैं हर सूरत में बहराइच जाऊंगा जी लगा हुआ है हज़रत ने देखा कि उसे बहराइच जाने से रोकना बड़ा मुश्किल है बाल बनवाया और उसे जाने की इजाजत दे दी। फिर हज़रत ने कहा कि जब तुम बहराइच जा ही रहे हो तो मेरा एक खत लेते जाओ। आपने एक खत लिखा और नाई से कहा कि इसे बहराइच लेते जाओ फलां याग में चले जाना वहां सुर्ख कपड़ा पहने हुए एक खूबसूरत नौजवान घोड़े पर सवार मिलेगाउसे यह खत दे देना और अगर जयाय दे तो लेते आना।
नाई दूसरे दिन सुबह सवेरे बहराइच जाने वाले काफिले के साथ रवाना हुआ। बहराइच पहुंचकर मज़ार की जियारत की और फातिहा पढ़ी इसके बाद नाई बाग में गया इधर-उधर नजर दौड़ाई कि एक खूबसूरत नौजवान सुर्ख कपड़ा पहने हुए घोड़े पर सवार सामने आ खड़ा हुआ नाई को कुछ डर महसूस हुआ वह घबरा गया नौजवान ने आते ही नाई से खत के बारे में पूछा नाई ने खत पेश कर दिया नौजवान ने खत पढ़े बगैर अपना जयाबी खत नाई को देते हुए कहा यह जवाब है उत्स खत का जो तुम लाए थे इसे हज़रत बन्दगी मियां को दे देना फिर उस नौजवान ने अपनी राह ली। और आंखों से ओझल हो गया।
अमेठी आने के बाद नाई ने यह खत हजरत बन्दगी मियां की खिदमत में पेश कर दिया। नाई के दिल में ये बात मुअम्मा बनकर खटक
रही थी कि आखिर ये नौजवान कौन था और खंत बगैर पढ़े उसका जवाब दे दिया। मुझे पहचानकर खत भी मांग लिया हिम्मत करके नाई ने हजरंत बन्दगी मियां से पूछ ही लिया कि हुजूर वह व्यक्ति कौन था जिसे आपने खत लिखा था और खत में आपने क्या लिखा था और उसने बिना पढ़े खत का जवाब दे दिया और जवाब में लिखा किया था। हजरत बन्दगी मियां ने कहा कि घोड़े पर सवार नौजवान कोई और नहीं बल्कि खुद सरकार गाजी पाक थे। जिनके उर्स में तुम गये थे। खत में मैंने यह लिखा था कि क्यों खुदा के बन्दों को वे फायदा कुलाकर परेशान करते हो। उन्होंने जवाब में लिखा कि जब तुम अपने एक नाई को नहीं रोक सके तो में कैसे इतने बड़े हुजूम को रोक सकता हूं। नाई ने कहा हुजूर फिर आपने मुझे पहले ही क्यों न बता दिया कि जो खत तुमते भांगेगा यो खुद हजरत सैय्यद सालार गाजी होंगे। हजरत बन्दगी मियों ने कहा माधान तुम्हारे लिए यही क्या कम है कि तुमने उनकी ज्यार कर ली। (देता है गादाइ गर्क करह व्याह देखकररीक राका न हरमि कोई तेरे दीवानों को) (खैरो कोई रोक सकेगा, शमा से परवानों को जिजहा दर पे बुला लिया, जिसे चाहा अपना बना लिया।)
सरदार वली मिम्बर कमेटी दरगाह का बयान है कि 1897 ई० में रात नौ बजे मैने खुद अपनी आंखों से देखा कि एक औरत नकाब पोश और एक मर्न थाए। उस समय दरगाह में कोई न था। मुझसे कहा कि दरवाजा और दो मैंने कहा कि इस समय दरवाजा नहीं खुल सकता तो कहने लगे कि मुझको हुक्म हुआ है कि इस समय सरदार अली हैं। तुम जाभी और उनसे कहो, में हैरत में पड़ गया कि इन्हें मेरा नाम कैसेमालूम हुआ मगर मैने कह दिया कि जब तुम बुलाए हुए आएं हो तो दरवाजा भी अपने आप खुल जाएगा चुनान्चे दोनों अन्दर गये और दरवाजा खुद ब खुद खुल गया कुछ देर के बाद वह वापस आए और मुझसे कहा कि मजार के अन्दर जाडी कुछ रखा है लेलो जब में गया तो देखा कि एक सीनी नर्म घोधियों से भरी हुई रखी है और पांच रूपये भी है जिसे मैंने ले लिया।
इसी तरह 1009 ई० में एक नाबीना औरत फखरपुर के पास रहने वाली उसका शोहर उसका हाथ पकड़े हुए दरगाह शरीक में आए कुछ समय तक मजारे अकदस के पास रहे और जो निकले तो खुश व खुर्रम उनकी दोनों आंखों में रोशनी आ चुकी थी। यह वाक्या भेने अपनी आंखों से चुद देखा और यह भी देखा है रात को शहीदों का लश्कर आपके दरपर हाजिर हुअ और फिर चला गया।
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Thanks for reading: कोई हरगिज न रोक सकेगा गाजी तेरे दीवानों को, Sorry, my Hindi is bad:)